उत्तर प्रदेश में 35 सालों के बाद कोई सरकार रिपीट हुई है। 25 मार्च को योगी आदित्यनाथ लगातार दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। हालांकि अब तक डिप्टी सीएम, कैबिनेट मंत्रियों के नाम तय नहीं हो सके हैं। हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसमें जातीय समीकरणों को पूरी तरह से साधने का प्रयास किया जाएगा ताकि 2024 की तैयारी मजबूती से की जा सके। चुनाव के दौरान सपा समेत सभी विपक्षी दलों ने भाजपा पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाया था। इसके अलावा ब्राह्मणों की भी उपेक्षा करने की बात कही गई थी। हालांकि भाजपा ऐसे परसेप्शन से निपटने के लिए मजबूत तैयारियों में जुटी है।
यही वजह है कि भाजपा आलाकमान इस बार दो की बजाय तीन डिप्टी सीएम देने पर विचार कर रहा है। पार्टी का मानना है कि इससे राज्य के प्रमुख वर्गों को यह संदेश दिया जाएगा कि उन्हें नेतृत्व में हिस्सेदारी देने का काम किया गया है।
बीते कार्यकाल में दो डिप्टी सीएम थे, केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा। इसमें दिलचस्प बात यह है कि सिराथू विधानसभा से चुनाव हारने के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम फिर से बनाया जा सकता है। इसके अलावा दिनेश शर्मा की छुट्टी भी की जा सकती है। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि बीते कार्यकाल में वह बहुत सक्रिय नहीं दिखे। इसके अलावा ब्राह्मणों के बीच भी पार्टी की साख को बहुत मजबूत नहीं कर सके। ऐसे में उनके स्थान पर ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है। वह लखनऊ कैंट से जीतकर आए हैं। एक दौर में बसपा में रहे ब्रजेश पाठक ब्राह्मणों के बीच खासे सक्रिय हैं। चुनाव के दौरान भी पार्टी ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए ब्रजेश पाठक का जमकर इस्तेमाल किया था।
केशव प्रसाद मौर्य को लेकर भाजपा किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती है। केशव प्रसाद मौर्य के ही प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए 2017 में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। इसके अलावा वह डिप्टी सीएम के तौर पर भी काफी वोकल दिखे थे। हालांकि चुनाव हारने के बाद उनके भविष्य को लेकर कयास लग रहे हैं, लेकिन पार्टी का मानना है कि वह बड़े ओबीसी नेता के तौर पर उभरे हैं। ऐसे में उन्हें हटाने का गलत संदेश जाएगा। यही वजह है कि भाजपा उन्हें बनाए रखने पर ही विचार कर रही है। उन्हें सिराथू सीट पर पल्लवी पटेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
अब बेबी रानी मौर्य की बात करें तो भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले उनका उत्तराखंड के गवर्नर पद से इस्तीफा दिलवाया था। इसके बाद आगरा ग्रामीण सीट से उन्हें उतारा भी गया, जहां उनको बड़ी जीत मिली है। गवर्नर पद छोड़कर चुनावी राजनीति में बेबी रानी मौर्य के आने के बाद से ही कयास लग रहे थे कि उन्हें सरकार का हिस्सा बनाया जा सकता है। दरअसल वह जाटव बिरादरी से आती हैं, जिससे मायावती ताल्लुक रखती हैं। दलितों की अन्य बिरादरियां भाजपा को कई चुनावों से अच्छा समर्थन दे रही हैं, लेकिन मौर्य को प्रमोट कर भाजपा को मायावती को एक और गहरा दर्द देने की तैयारी में है।(Agency)