आतंकी नजरें और मीरजाफरों की फौज

आतंकी नजरें और मीरजाफरों की फौज

 - डा. रवीन्द्र अरजरिया




देश-दुनिया में आतंक का साय गहराता ही जा रहा है। हथियारों के सौदागर अपने उत्पादनों की बिक्री के लिए नित नये बाजार तैयार करने में जुटे हैं। वैध ढंग से कहीं ज्यादा अवैध ढंग से हथियारों की हो रही बिक्री ने जीवन के सामने चुनौतियां प्रस्तुत कर दी है। आतंकियों के खेमों में हथियारों की आपूर्ति करके राष्ट्रों के सामने सक्षम होने की मजबूरी पैदा की जा रही है। अहंकार के दावानल ने वर्चस्व की जंग शुरू कर दी है। मानसिक दुर्बल लोगों को भडकाने के लिए लालची मीरजाफरों की जमातें तैयार की जा रहीं हैं। कहीं मजहबी हुकूमत का सगूफा फैलाया जा रहा है तो कहीं सीमायें बढाने की जद्दोजेहद हो रही है। 



ताकत की दम पर सल्तनत हथियाने की तालीम देने वालों में अमेरिका, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देश हमेशा से ही अग्रणीय रहे हैं। हालिया हालातों में इजराइल के साथ हो रहे हिजबुल्लाह के युध्द में अब फ्रांस ने आमद दर्ज कर दी है। लेबिनान के साथ संबंधों की दुहाई पर उसकी सक्रियता इजराइल के साथ कथित रूप से खडे अमेरिका के लिए बाहर से दिखने वाली एक चुनौती है। ऐसी ही चुनौतियां दिखाकर अन्य देश सहानुभूति की मरहम के नाम पर खूनी चालें चल रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका ने जहां अफगानस्तान, यूक्रेन, पाकिस्तान, बंगलादेश जैसे राष्ट्रों को मानसिक गुलाम बना लिया वहीं चीन की कुटिल चालों में श्रीलंका, म्यांमार, ताइवान, मालदीप, नेपाल, पाकिस्तान जैसे देश पूरी तरह फंस चुके हैं। वे चाहकर भी उसे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। 



ईरान से लेकर कतर तक, तुर्की से लेकर सीरिया तक आतंक की पाठशालाओं में वहां की सरकारें अपने छदम्मवेशधारी सेनायें तैयार करने में जुटी हैं। अत्याधुनिक हथियार, नवीनतम तकनीक और कुशल प्रशिक्षण के साथ-साथ भारी मात्रा में धनराशि मुहैया कराई जा रहीं हैं। कहीं हिजबुल्लाह सक्रिय है तो कहीं हूती, कहीं हमास का बोलबाला है तो कहीं अलकायदा। कहीं इस्लामिक स्टेट का फतवा जारी होता है तो कहीं जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुुस्लिमीन लहू डूबी कलम से वर्तमान लिखने लगता है, कहीं अल शबाब की गोलियां चलतीं हैं तो कहीं लश्कर-ए-तैयबा के धमाके गूंजते हैं। 



कहीं अल-नुसरा फ्रंट के जहर बुझे हथियार लोगों की जानें लेते हैं तो कहीं जेमाह इस्लामिया की बारूद से सांसें खामोश होतीं हैं, कहीं अबू सय्याफ के फरमान जारी होते हैं तो कहीं बोको हराम के हमले होते हैं। समूची दुनिया को आतंक के झंडे तले झुकाने की कोशिश में लगे खास मुल्क और उनके खास सरपरस्तों की घातक चालें अब लाशों के कारोबार को बुलंदी पर पहुंचाने में लग गईं हैं। दूसरी ओर देश के अन्दर के हालात भी भीतर-भीतर सुलगती जा रही बारूद बनते जा रहे हैं। म्यामांर के रास्ते आतंकियों ने मणिपुर में कुकी बनकर  पहाडों में बंकरों का निर्माण शुरू कर दिया है। 



गुप्त सूत्रों की मानें तो सीमापार से 900 प्रशिक्षित आतंकियों ने राकेट लांचर, ड्रोन, मिसाइल सहित अत्याधुनिक हथियारों के साथ मणिपुर में आमद दर्ज कर ली है। इन घुसपैठियों ने 30-30 के समूहों में विभक्त होकर पूरे इलाके को अपने कब्जे में ले लिया है। आतंकियों के नेटवर्क के साथ वहां के अनेक प्रशासनिक अधिकारियों के कदमताल करने की चर्चायें भी जोरों पर हैं जो केन्द्रीय बलों को सहयोग देने के स्थान पर भ्रमित करके षडयंत्रकारियों के मंसूबे पूरे करने में लगे हैं। ऐसे ही हालात जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिलते हैं जहां पाकिस्तान के दहशतगर्द देश के मीरकासिमों के सहयोग सेे अपने पांव फैला बैठे हैं। इन दुश्मनों को संरक्षण देने हेतु अनेक राजनैतिक दलों के जन्मजात नेता निरंतर उत्साहित देखे जाते हैं। 



हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी श्रीशानन्द ने बैंगलुरु के बाजार से गोरीपाल्या तक मैसूर रोड फ्लाइओवर के भू भाग को पाकिस्तान में होने जैसी स्थिति का खुलासा करके कटु सच्चाई की ओर देश का ध्यानाकर्षित किया है। एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने तो यहां तक कहा कि 'मैसूर रोड फ्लाइओवर पर जायें तो हर रिक्शावाले के पास 10 आदमी हैं। वहां कितने भी सख्त अधिकारी भेज दें, उसे पीटा ही जायेगा। यह किसी चैनल पर नहीं दिखाया जा रहा है।' न्यायाधीश की यह टिप्पणी विस्फोट होते आन्तरिक हालातों का प्रत्यक्ष आभास करती है। उन्होंने खुलकर देश के चैनल्स पर पक्षपाती खबरें दिखाने का आरोप लगाया परन्तु मोटी चमडी पर चाबुकों का बेअसर होने वाला मुहावरा निरंतर चरितार्थ हो रहा है। यहां रोम के जलने पर नीरो की मस्ती भरी बांसुरी बदस्तूर बज रही है। 


पैगम्बर मोहम्मद साहब की जिन्दगी के खास मौके पर ईरान मुखिया अली खामेनेई ने भारतीय मुसलमानों को एकजुट होने के लिए खुला आमंत्रण भेजा। यह आमंत्रण उन्होंने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म 'एक्स' पर संदेश प्रसारित करके दिया ताकि पूरी दुनिया पर इस का असर हो और भारत की इस्लाम विरोधी छवि बने। आखिर चन्द लोग धरती से मानव प्रजाति समाप्त करने पर क्यों तुले हैं, यह समझ से परे है। लावारिस लाशों का कोई मजहब नहीं होता, बहते खून का कोई धर्म नहीं होता, अनाथ बच्चे की कोई जाति नहीं होती, जल-जमीन-जायजाद का कोई वंश नहीं होता। सब कुछ समान है, अन्तर तो केवल वर्चस्व कायम करने की हवस ने पैदा कर दिया है। कोई भी धर्म इंसानियत के कत्ल की इजाजत नहीं दे सकता, यह तो केवल चन्द सिरफिरों की खराफात है जो सुल्तान बनने ख्वाबों के पीछे भागे जा रहे हैं। 


जिस्म से बेपनाह मुहब्बत करने वाले रूह के पैगाम को नजरंदाज कर रहे हैं। खुदा के नाम पर खुद के लिए, खानदान के लिए, खुशामदीदों के लिए दौलत इकट्टा करने में जुटे लोगों की जमात अय्याशी के नये मुकाम हासिल करने को ही जन्नत मानती है। गुलामों की फौज पर रुतवा कायम किया जा सके। जिस्मानी मौज-मस्ती में गोते लगाये जा सकें।  खुद की हिफाजत करते हुए अपनों के लिए बेतादाद दौलत जमा की जा सके। ऐसे लोगों की नजरों में देश, की वर्तमान नीतियां और विकास यात्रा बेहद खटक रही है। 


उज्जवल होती अन्तर्राष्ट्रीय छवि से लेकर मजबूत देशों के मध्य बढती पैठ तक षडयंत्रकारियों को खटक रही है। ऐसे में आतंकी नजरों में कैद होते हिन्दुस्तान के लिए बाह्य षडयंत्रकारी जितने घातक हैं उससे ज्यादा घातक हैं मुल्क में रहने वाले मीर जाफर, जिनके इरादे उनके बयानों में खुद-ब-खुद जाहिर हो रहे हैं। उनकी हरकतों से रोशन हो रहे हैं उनके मंसूबे। इन जहरीले इरादों के खिलाफ आम आवाम को एक जुट होकर मुहिम चलाना होगी, जबाब देना होगा और नोचना होगा उनके चेहरों से सफेदपोश नकाब। तभी इंसान, इंसानियत और इंतजाम सुरक्षित रह सकेंगें। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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