आज उन शब्दों का इस्तेमाल करने का मन कर रहा है जो सार्वजनिक तौर पर करने नहीं चाहिए। प्रेस-पुलिस और पॉलिटिक्स आज इन तीनों की ही आरती उतार कर पूजा करने का मन कर रहा है. एक मेंढक पूरी तलाब को खराब करती है लेकिन कुछेक ऐसे महान शख्स हैं जो रेड लाइट एरिया की सीमाओं को भी लांघते हुए दिख रहे हैं. हां- आरती उतारनी चाहिए, कभी पुलिस वालों की जो कहते हैं, यह क्षेत्र हमारी सीमा में पड़ता ही नहीं।
कभी थाने गए हो- जाकर देखिएगा, अगर आपकी कोई सिपारिश नहीं तब थाने मेें मौजूद खाकी पहने आपकी कोई सुनवाई नहीं करेगा। अगर आप ज्यादा बोलोगे- तब हो सकता है एक मैप भी आपको दिखाया जाए. कि आप इस क्षेत्र में आते ही नहीं। क्या ऐसा कोई कानून नहीं की हम एफआईआर कहीं भी दर्ज करवा सकते हैं. ताकि संबंधित क्षेत्र को वो एफ आई आर ट्रांसफर की जा सके।
खुदा न करे आपको कभी पुलिस स्टेशन, अस्पताल और हुक्मरानों के पास जाना पड़े। लेकिन अब पत्रकार कहने वाले भी कुछेक खुद को इसी कैटगिरी में रख लें तब सही रहेगा। हरियाणा में 19 साल की लड़की से रेप हुआ और लगे हुए हैं सब के सब अपनी टीआरपी - बढाने, और ये वेबसाइड और यू टयूूूब चैनल खोलकर जो बैठे हुए हैं उन्होंने तो हदे ही पार कर दी है. न जाने कौन सी किताब पत्रकारिता की इन्होंने पढ़ी है जो अब न जाने कहां पड़ी है. हमारे हाथ नहीं लग रही.
सब पर केस करने का मन कर रहा है. जो सब पीड़िता की पहचान उजागर किए हुए हैं. यूं गोपनीय रखी जाती है, उससे पहले अगर डाटा इक्कठा करुं - उस बच्ची के साथ जो हुआ -उस तारीख को न जाने उसी क्षेत्र- उसी शहर, उसी राज्य के साथ अगर उतर भारत का भी डाटा निकालूं तब न जाने कितने बलात्कार के मामले उसी तारीख के मिल जाएंगे। राजनेता अपनी ब्यानबाजी से बाज नहीं आते. अब यह गोदी मीडिया वाले जखम को कुरेतने से बाज नहीं आते. ले लो टीआरपी- अगले हफ्ते की चाय के साथ लिस्ट को भीगो कर चबा जाना, अगर हजम करने की क्षमता रखते हो तब... शर्म आती नहीं
सरकार के पास क्या जाओगे- क्या पूछोगे, जवाबः पुलिस कार्रवाई-जांच कर रही है. वो क्या राज्य का और देश का भला करेंगे जिन्हें यह तक नहीं पता होता कि उनका बच्चा क्या कर रहा है. सवाल गतल है क्या आईए- कटघरे में, हम पूछेंगे दो सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे। ये सब के सब इन्हे पता नहीं कि इनका बच्चा किस अवस्था और किस मानसिक स्थिति में है. विकास की बातें करने चले हैं।
आ रहा है 2019,,,, राजनीति करो , किसी का बेटा शरहद पर मरे, (शहीद शब्द का अपमान आप लोगों की बात करते हुए नहीं कर सकता) किसी की बेटी दरींदगी की भेंट चढ़े। इन्हें कूछ नहीं लेना देना- और कुछेक पत्रकार जो बने फिरते हैं उनके लिए भी मौका है, जान-पहचान हुक्मरानों से बढ़ाने का, करो प्रचार की हर दुराचार की कवरेज, हैडलाइन न सही, इनपुट को बोलकर --- जो खबरें ऱफ्तार से 100 -200 चलाई जाती है उनमें तो लग ही जाएगी।
प्राथमिकता, प्रमाणिकता और सत्यता के आधार पर लिख रहा हूं. आज जो हालात पत्रकारिता के हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा फिर जिस तरह लोग कुछेक नेताओं और पुलिसवालों को निकालते हैं, वैसे ही हर पत्रकार को भी निकालेंगे। बेटियों की बहादुर वाला राज्य आज सच्ची कहूं तो शाम को अगर बेटी बेखौफ होकर बाहर जाती भी होगी। मां- पिता के मात्थे पर चिंता की लकीरें खींच जाती होंगी। और शायद जो बेटियां कहीं दूर पढ़ाई करती हैं या काम उनके माता-पिता को भी इस खबर के बाद सब्र जिंदगी का कुछ और ही होगा। बयान करना मुश्किल है.