इस बार के बजट में एक मुद्दा रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने पर भी रखा गया। यह सही भी है हमारे यहां व्यक्ति के रिटायर होने के बाद उस व्यक्ति की परेशानियां बढ़ जाती है। उस व्यक्ति का समय कैसे कटेगा या उन परिवारों के लिए जहां एक व्यक्ति के कंधों पर ही परिवार का भार है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हमारे यहां 50 - 55 की उम्र के बाद व्यक्ति के स्वास्थ्य में अंतर आने लगता है। उसकी कार्यक्षमता पर असर पड़ने लगता है। वैसे अगर सोचा जाए तो रिटायरमेंट की उम्र उसी कर्मचारी की बढ़ानी चाहिए जिसका स्वास्थ्य कार्य करने की क्षमता को बर्दाश्त कर सके।
एक सर्वे के अनुसार भारत में स्त्री और पुरुष दोनों की लाइफ एक्सेप्टेंसी अब बढ़ती जा रही है और उसी के आधार पर इस निर्णय पर विचार किया जा रहा है। मध्य प्रदेश यह नियम लागू भी हो गया है। वहां रिटायरमेंट उम्र 62 साल कर दी गई है। बढ़ती जनसंख्या और पेंशन फंडिंग के दबाव के कारण यह कदम उठाए जाने पर विचार हो रहा है और व्यक्ति की रिटायरमेंट की समय सीमा बढ़ाकर 70 करने पर विचार किया जा रहा है। यह निर्णय व्यक्ति के लिए अवसर है कि वह अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाए।
नये कर्मचारियों को वेतन देना और रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन देने से सरकार पर भार तो पड़ता ही है, फिर नये रोजगार मिल नहीं रहे हैं। उस पर यह निर्णय बुजुर्गों के लिए राहत ही है। एक सर्वे के अनुसार देश में फर्टिलिटी रेट में गिरावट आई है और 19 साल की आयु वर्ग की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। सर्वे के अनुसार बीते कुछ सालों में महिलाओं की उम्र 13.3 साल और पुरुषों के लिए 12.5 वर्ष बढ़ी है। मतलब मौजूदा वक्त में भारत में व्यक्ति का स्वास्थ्य मे अच्छा सुधार है। आंखों देखी बात है मेरे एक परिचित व्यक्ति हैं उनकी उम्र शायद 70 के करीब होगी। वो रिटायर हो चुके हैं लेकिन इस उम्र में भी अपने आप को व्यस्त रखा है।
अपनी बेटे के ऑफिस का अकाउंट संभालते हैं, पेपर वर्क करते हैं। अपनी सोसाइटी का काम का काम, कैश का काम संभालते हैं और खुद अपना पर्सनल पेपर वर्क भी संभालते हैं। काम के जरिए उन्होंने अपने को व्यस्त और स्वस्थ दोनों बना रखा है। ऐसे कई उदाहरण है जहां लोग बैठे बैठे काम करते हैं। कई लोग न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं, ऑनलाइन टीचिंग क्लासेस चलाते हैं जो कि सराहनीय कार्य है। खाली बैठकर खुद को बीमार करने से बेहतर है कि कुछ काम करें।