लखनऊ। लखनऊ के विभिन्न जन संगठनों, श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में जनांदोलनों की हिन्दी मासिक पत्रिका 'राज समाज' के प्रवेशांक का लोकार्पण हजरतगंज स्थित काफी हाउस में किया गया। तथा इस अवसर पर जनांदोलनों की दशा व दिशा पर चर्चा भी हुई। कार्यक्रम का संचालन एडवोकेट वीरेन्द्र त्रिपाठी ने किया। पत्रिका के संपादक के के शुक्ला ने बताया कि इस पत्रिका का मकसद तमाम जनांदोलनों के बीच आपसी संवाद कायम करना और उनकी एकजुटता का एक वैचारिक आधार तैयार करना है। यह पत्रिका किसी व्यक्ति या संगठन की नहीं बल्कि पूरे आंदोलन की है।
उन्होंने आग्रह किया कि सभी साथी इसे आगे बढ़ाने में रचनात्मक एवं व्यवहारिक हस्तक्षेप करें। चर्चा में यह बात सामने आयी कि आज सामाजिक बदलाव की राजनीति में थोड़ा ठहराव दिखता है, और इसकी प्रमुख वजह वैचारिक व सांस्कृतिक है। वैचारिकता के संकट के कारण हम बार-बार सत्ता की चालों में फंस जाते है। जन आंदोलनों के लिए जरूरी है कि वे संघर्षों का अपना क्षेत्र निर्मित करें और सत्ता, सरकार को जवाबदेही के लिए बाध्य करें। अभी इसका उल्टा हो रहा है सत्ता हमसे जवाबदेही की मांग कर रही है।हमें नागरिक समाज की राज्य सत्ता के ऊपर वरीयता स्थापित करने के लिए एक वैचारिक आंदोलन के लिए काम करना पड़ेगा। राज समाज इसी कार्यभार को आगे बढ़ायेगी।
इस अवसर एआईडब्लूसी के अध्यक्ष ओ पी सिन्हा, किसान नेता शिवाजी राय, सोशलिस्ट नेता ओंकार सिंह, सोशलिस्ट फाउंडेशन के रामकिशोर, आधी आबादी की अरूणा सिंह, जसम के कौशल किशोर, वरिष्ठ कवि व लेखक बी एस कटियार,रंगकर्मी महेश देवा, वरिष्ठ अधिवक्ता लक्ष्मी नारायण, डाॅ सतीश श्रीवास्तव, संजय खान, पवन त्यागी,सन्तराम गुप्ता, बाबर नकवी, जय प्रकाश, देवेन्द्र वर्मा, राजीव कुमार, वीरेन्द्र गुप्ता, डाॅ नरेश कुमार, डाॅ राम प्रताप, गौरव सिंह, एडवोकेट उदयवीर, आशीष कुमार, जय प्रकाश मौर्या, आशुकांत सिन्हा अन्य लोग उपस्थित रहे।