आप उनसे पेड़ पौधों की विविध प्रजातियों के बारे में आप बात कर सकते हैं, या फिर अमेजॉन के जंगलों में पाए जाने वाले उंगली बराबर मेंढक से लेकर, भारत के पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले रंगीन मेढक को लेकर आप उनसे बातें कर सकते हैं। विदर्भ के क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव जंतु के बारे में आप उनसे बात कर सकते हैं, बात करते समय पर लगेगा कि उनके पास जो ज्ञान है उसे साझा करने कि उनके पास कितनी उत्कंठा है। डॉ वीरेंद्र प्रताप यादव से आप शरीर में होने वाली बीमारियों के बारे में भी आप उनसे बात कर सकते हैं।
इस बार लॉकडाउन में उन्होंने अपनी पत्नी आदरणीय वंदना भाभी जी के साथ व अपनी दो प्यारी बेटियां पाखी और पीहू के साथ मिलकर पत्थर की इस कला को पुनर्जीवित किया है। भारत में तो यह कला लुप्त प्राय ही है, जिस तरह इन पत्थरों में उन्होंने जान डाली है, उससे उनकी मानव विज्ञान के प्रति गहरी रूचि और संवेदना का पता चलता है। वे कहते हैं कि मानव विज्ञान केवल सेमिनार और पुस्तकालय का विषय न बनकर सचमुच में जनकल्याण का विषय बने।
इस उपेक्षित विषय पर उन्होंने अपनी कूची चलाई है। इस तरह उनकी रूचि इन आकृतियों में या पेंटिंग में दिखाई देती है। इन पेंटिंग्स में विभिन्न आयामों का विस्तार है, जहां एक तरफ सदियों से आदिवासियों के जनजीवन का प्रतीक एक पत्थर को उन्होंने एक मानव मुख के रूप में उतार दिया है। एक निर्जीव पत्थर को स्वान के रूप में कर दिया है। वहीं पर मानव के विभिन्न मुखोटे इस बात की तस्दीक करते हैं कि मनुष्य की यात्रा में मानव ने कितनी लंबी दूरी तय की है, जैसे होमोसेपियंस से लेकर पाषण मानव आदि से लेकर वर्तमान मानव तक।
डॉ वीरेंद्र प्रताप यादव की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी अभी लॉकडाऊन खुलने के बाद लगाई जाएगी और उसके बाद इन पत्थरों की पेंटिंग की आकृतियों की ऑनलाइन नीलामी एवं बिक्री की जाएगी और उससे होने वाली आय को अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की सुदूर सात आदिवासी समूहों के विकास और संरक्षण के लिए खर्च किया जाएगा।
-डॉ. सुरजीत कुमार सिंह