-रामविलास जांगिड़
मैं कई गधों के साथ रहा हूं और हर एक गधाई किस्म की बातों को अच्छे से जानता हूं। उनके साथ-साथ रहते हुए मैं भी एक गधा हो गया हूं। उनके साथ मैं भी अपनी गधाई दिखाने लगा हूं। सच पूछो तो मुझे ऐसे-ऐसे गधों से पाला पड़ा कि वे हमेशा अपने आपको घोड़ा ही कहते लेकिन असल में वे गधे ही निकले। कॉलेज में पढ़ता उस जमाने से ही मुझे गधों से घिरे रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं अपने साथ ही अन्य सभी गधों के रंग, रूप, विचार, ध्वनि आदि की प्रशंसा करता रहा।
मैं आज भी ऐसे गधों को देखता हूं तो मेरा मन भी ढेंचुं-ढेंचुं की सम्मोहक ध्वनि करने लग जाता है। भीतर एक विचित्र किस्म की गधाई पैदा होने लगती है। देखते ही देखते यह गधाई समस्त कायनात में फैल जाती है। कई गधे तो इस प्रकार के हैं कि उनको सावन में सिर्फ हरा ही हरा सूझता है जैसे नेता जी को कुर्सी पकड़ते ही कटमनी, तोलाबाजी और रोकड़ा इकट्ठा करने का टारगेट सूझता है। जैसे पुलिस वाले को अपने आसपास का हर व्यक्ति मुर्गा ही नजर आता है। जब मेरे कॉलेज टाइम के गधों को तलाश करता हूं तो वे सभी मुझे इधर-उधर ही ढेंचुं-ढेंचुं करते दिखाई पड़ते हैं।
मेरी नजर में है एक गधा! बल्कि दो गधे हैं! नहीं मैं गलत कह रहा हूं। कई गधे हैं मेरी पहचान में, जो चुपचाप अपना बोझा लादे आलाकमान की एक टिचकारी से उसी दिशा में चलते रहते हैं, जिधर आलाकमान उनको हांकता है। आलाकमान की शब्द ध्वनि से आकुल-व्याकुल ये गर्दभ कुमार इतने आज्ञाकारी होते हैं कि अच्छी-खासी भेड़ों का झुंड भी इनके आगे शर्मिंदा हो जाता है। आलाकमान की राग, रंग, ढंग, चाल, चरित्र, चेहरा आदि के मुखोटे ओढ़कर चलने वाले गधे खूब देखे हैं।
वैसे गधों को यह सब मालूम होता है कि मेरा आलाकमान भी एक विशिष्ट प्रकार का गधा ही है और ऐसे विचार मन में लेकर वे शानदार गधापंथी का निर्वहन करते हैं। आलाकमान कहें वैसी ही गधाई करने के लिए मचलने वाले गधों का एक पूरा पार्टी झुंड देखा है। वैसे मैं स्वयं भी एक अच्छा-खासा गधा ही हूं। कुछ न बोलना और बिना कुछ ना-नुकर किए सीधे-सीधे आदेशित दिशा में बढ़ते रहना ही मेरी गधाई का चरित्र है। हालांकि कई गधे ऐसे होते हैं जो समय पाकर दुलत्ती झाड़ दिया करते हैं। लेकिन दुलत्ती झाड़कर भी वे एक अन्य घूरे में अपनी थूथन मारते फिरते रहे हैं। लेकिन मैं एक ऐसा गधा हूं जो दुलत्ती भी नहीं झाड़ता हूं।
एक बार मेरी जिंदगी में मैंने कान ऊंचे करके अपनी थूथन को हवा में लहराने की हिम्मत की थी। अगले ही पल आलाकमान की आंख दिखी और मैं धड़ाम से पार्टी लाइन पर पसर गया। कई गधे मेरी नजर में है। कुछ गधे अफसर बन गए हैं, तो कुछ नेता बनकर इठला रहे हैं। कुछ न्यूज़ चैनलों में घुस गए और कुछ विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बन टाई बांधे ज्ञान बघार रहे हैं। तमाम गधा लोगों के बीच रहकर अब मैं आदमी तो हरगिज़ नहीं रहा। जब आप मुझे देखेंगे तो मुझे हर एक कोने से एक गधा ही पाएंगे। सच तो यह है कि गधा जो देखन में चला गधा न मिलिया कोय। बस ढेंचुं-ढेंचुं कर लिया, देखो मुझसा गधा न कोय! सच्चा फायदा तो इसी में है।