अगड़ी जाति से होने के कारण कटा दिग्विजय सिंह का पत्ता? जानें खड़गे के नाम पर कैसे लगी मुहर

अगड़ी जाति से होने के कारण कटा दिग्विजय सिंह का पत्ता? जानें खड़गे के नाम पर कैसे लगी मुहर

राजस्थान में उठे सियासी बवंडर के बाद कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में पल-पल स्थिति बदलती रही। अशोक गहलोत ने पहले तो सोनिया गांधी से माफी मांगी और फिर बाद में अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

राजस्थान में उठे सियासी बवंडर के बाद कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में पल-पल स्थिति बदलती रही। अशोक गहलोत ने पहले तो सोनिया गांधी से माफी मांगी और फिर बाद में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद इस लड़ाई में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सदैव अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह की एंट्री होती है। उन्होंने तो पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने के वास्ते पर्चे भी ले आए थे। नामांकन की सारी तैयारी पूरी कर ली गई थी। कहा गया कि मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक उनके प्रस्तावक बनेंगे। लेकिन, नामांकन के आखिरी दिन एक और नाम की एंट्री होती है। वह हैं गांधी परिवार के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे की।

अशोक गहलोत के रेस से बाहर होने के बाद अध्यक्ष पद के लिए नए उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। दिग्विजय सिंह के मैदान में आने के बाद पार्टी नेताओं ने सोनिया गांधी को समझाया कि कांग्रेस का मूल वोट बैंक दलित है। जबकि दिग्विजय सिंह सहित बाकी सभी दावेदार अगड़ी जाति के हैं। दलित नेता को अध्यक्ष बनाने से पूरे देश में दलित और महादलित मतदाताओं में सकारात्मक संदेश जाएगा।

इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दलित नेता के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक, सुशील कुमार शिंदे और कुमारी शैलजा के नाम पर विचार हुआ। खड़गे और शिंदे की उम्र ज्यादा होने की वजह से मुकुल वासनिक पर चर्चा हुई। वासनिक से बात करने की जिम्मेदारी अशोक गहलोत को दी गई।

गुरुवार देर रात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल की बैठक हुई। राहुल गांधी से भी चर्चा हुई और खड़गे का नाम तय किया। इसके बाद शुक्रवार को केसी वेणुगोपाल ने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं से बात कर मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर सहमति बनाई।

इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि खड़गे के नाम पर असंतुष्ट गुट के नेताओं को भी कोई ऐतराज नहीं था। उनके नमांकन के दौरान इसकी बानगी भी देखने को मिली। आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक जैसे विद्रोही गुट के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावक बने। मनीष तिवारी ने भी उन्हें अपना समर्थन दिया।


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