यूपी में साल 2024 की मई में सिर्फ लोकसभा चुनाव ही नहीं होंगे बल्कि एक और इलेक्शन होगा जिस पर बीजेपी और सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के साथ दोहरी फाइट देखने को मिलेगी. एक तरफ लोकसभा चुनाव को लेकर सपा-भाजपा जोर लगाएंगी तो वहीं विधान परिषद के लिए दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर होगी. पांच मई को यूपी विधानपरिषद की 13 सीटें खाली हो रही है, ऐसे में केंद्र के साथ-साथ अपने एमएलसी बनाने के लिए भी सियासी जोड़ घटा शुरू हो गया है.
मई महीने में विधान परिषद की जो 13 सीटें खाली हो रही हैं, उनमें से बीजेपी के पास 10, सहयोगी अपना दल के पास 1 सीट है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास 1-1 सीट है. इन सीटों पर पांच मई से पहले चुनाव कराया जाना है.
यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव के बाद हालात बदल गए हैं. विधानसभा में सपा के पास आरएलडी समेत 118 विधायक हैं. इनमें 109 सपा के और 9 विधायक रालोद के हैं. जबकि एनडीए गठबंधन के पास 279 विधायक हैं, जिनमें बीजेपी के 254, अपना दल (एस) के 13, निषाद पार्टी के 6 और सुभासपा के 6 विधायक शामिल हैं. जबकि कांग्रेस के दो, बसपा का एक और जनसत्ता दल के दो विधायक हैं. ये दल जिसे समर्थन देंगे उससे समीकरण बदल भी सकते हैं.
विधानसभा के मौजूदा गणित के हिसाब से एक एमएलसी को जिताने के लिए 29 विधायकों की जरुरत होगी. इस हिसाब से बीजेपी कम से कम नौ एमएलसी की सीटें जीत सकती है, जबकि सपा गठबंधन के खाते में चार सीटें जा सकती हैं. इसका सपा को एक बड़ा फायदा ये होगा कि विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के लिए सपा की दावेदारी हो जाएगा. अभी उसके पास नौ सदस्य हैं जबकि नेता प्रतिपक्ष के लिए 1/10 सदस्य के मानक से वह एक सीट कम है. लिहाजा मई में उसकी सीटें बढ़कर दहाई अंक में पहुंच जाएंगी, ऐसे में उसे नेता प्रतिपक्ष का पद वापस मिल जाएगा.
यूपी विधान परिषद में जिन 13 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें बीजेपी से यशवंत सिंह, विजय बहादुर पाठक, विद्या सागर सोनकर, सरोजनी अग्रवाल, अशोक कटारिया, अशोक धवन, बुक्कल नवाब, महेंद्र कुमार सिंह, मोहसिन रजा, निर्मला पासवान शामिल हैं, जबकि अपना दल एस से आशीष पटेल, सपा से नरेश चंद्र उत्तम और बसपा के भीमराव आंबेडकर का नाम शामिल हैं.