एनडीए और इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ रही मायावती की चाल, बढ़ रही मुश्किलें

एनडीए और इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ रही मायावती की चाल, बढ़ रही मुश्किलें

यूपी लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती जिस रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है उससे इंडिया गठबंधन के साथ एनडीए को भी नुकसान हो सकता है.




उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती जिस रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है उससे इंडिया और एनडीए दोनों खेमों में हलचल मची हुई है. बसपा ने भले ही अभी तक अपने उम्मीदवारों की आधिकारिक सूची जारी नहीं की है लेकिन वो एक-एक हर सीट पर पार्टी प्रभारी घोषित कर रही है, जो बसपा के प्रत्याशी होंगे. इस लिस्ट से साफ की मायावती सिर्फ इंडिया गठबंधन ही नहीं एनडीए के लिए भी परेशानी खड़ी कर रही हैं. 


बसपा ने अब तक प्रत्याशियों के तौर पर जिन प्रभारियों को घोषित किया है. इनमें से पांच सीटों पर मुस्लिम, पांच सीटों पर ब्राह्मण, तीन पर दलित, दो ओबीसी और एक जाट चेहरा शामिल किया गया है. इस लिस्ट पर नजर डाले तो मायावती ने जहां पांच सीटों पर मुस्लिम प्रभारी देकर सपा-कांग्रेस के वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश की  है तो वहीं पांच सीटों पर सवर्ण प्रत्याशी के जरिए एनडीए की राह में भी रोड़े अटकाए हैं. 


बसपा हर सीट पर जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रही है. जैसे पश्चिमी यूपी में कई सीटों पर दलित और मुस्लिम समीकरण को देखते हुए दलित या मुस्लिम प्रत्याशी को तवज्जो दी है, नगीना और सहारनपुर सीट पर सबसे ज़्यादा मुस्लिम और दलित वोटर हैं, जिसे देखते हुए नगीना से सुरेंद्र पाल और सहारनपुर सीट से माजिद अली के चेहरे को आगे किया है. 


कैराना में मायावती क्षत्रिय श्रीपाल राणा पर दांव चला है. जिसके ज़रिए दलित-मुस्लिम के साथ सवर्ण वोटरों का सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश की है. क्योंकि इस सीट पर हिन्दू और मुस्लिम आबादी बराबर है. आगरा में दलित वोटर बड़ी संख्या है. इनमें भी सबसे ज्यादा जाटव वोटर हैं. यहां से बसपा ने पूजा जाटव पर भरोसा जताया है. 


इसी तरह फतेहपुर सीकरी में ब्राह्मण वोटरों को देखते हुए रामनिवास शर्मा, उन्नाव में अशोक पांडे और कानपुर की अकबर पुर सीट से राजेश त्रिवेदी का चेहरा आगे किया है. इन तीनों सीटों पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में कहा जा सकता है कि बसपा सुप्रीमो ने एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर आगे बढ़ रही हैं. इस फॉर्मूले के ज़रिए वो एक बार सत्ता में भी रह चुकी है. 


बसपा सुप्रीमो की इस चाल से सपा और बीजेपी दोनों की मुश्किल बढ़ सकती है. इसका एक उदाहरण 2022 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जब मायावती ने ऐसे चेहरों पर दांव चला जो कई सीटों पर सपा की हार की वजह बने. इसी तरह सवर्ण प्रत्याशियों को आगे कर मायावती इस बार एनडीए को भी डेंट लगा सकती है. 


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