महादेवा घाट पर छात्रा श्रेया यादव का हुआ अंतिम संस्कार: हाशिमपुर बरसावां में छाया शोक

महादेवा घाट पर छात्रा श्रेया यादव का हुआ अंतिम संस्कार: हाशिमपुर बरसावां में छाया शोक


अंबेडकरनगर टांडा तहसील के महादेवा घाट पर सोमवार सुबह श्रेया यादव का अंतिम संस्कार किया गया। श्रेया के निधन की खबर सुनकर हाशिमपुर बरसावां गांव में लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। हर किसी की आंखें नम थीं और दिल में शोक का गहरा असर था।


गांव के लोगों ने श्रेया के निधन को एक दुखद घटना बताते हुए कहा कि इस हादसे ने सिस्टम की कमियों को उजागर कर दिया है। श्रेया के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित करने के लिए स्थानीय लोग और प्रशासनिक अधिकारी भी उपस्थित थे। एसडीएम सदर सौरभ शुक्ल ने भी पुष्पांजलि अर्पित की और महादेवा घाट तक पार्थिव शरीर के साथ गए। एसडीएम टांडा मोहनलाल गुप्त और सम्मनपुर थाना प्रभारी राजेश की मौजूदगी में श्रेया का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। जब पिता राजेंद्र यादव ने मुखाग्नि दी, तो घाट पर मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गईं।


श्रेया का जन्म 1 अगस्त 2002 को हुआ था, और वह 27 जुलाई की शाम दिल्ली में एक दुर्घटना का शिकार हो गई। श्रेया के जन्मदिन से सिर्फ चार दिन पहले हुई इस दुःखद घटना ने पूरे परिवार, दोस्तों और शुभचिंतकों को गहरा आघात पहुंचाया है। भाई अभिषेक ने कहा कि श्रेया का जन्मदिन मनाने की तैयारी थी, और हमेशा की तरह इस बार भी फोन पर बात कर उसकी हिम्मत बढ़ाने का इरादा था।


श्रेया का सपना आईएएस बनकर नीली बत्ती में गांव आने का था। परिवार ने उसकी पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किया था। दिल्ली में उसे एक सुविधायुक्त कमरा दिलाया गया और प्रतिष्ठित कोचिंग में दाखिला करवाया गया। पिता राजेंद्र और मां शांति समेत बड़े भाई अभिषेक को विश्वास था कि श्रेया एक दिन आईएएस बनकर उनके सपनों को साकार करेगी। लेकिन नियति ने उन्हें एक बड़ा झटका दिया। 


अकबरपुर तहसील के हाशिमपुर बरसावां की रहने वाली श्रेया बचपन से ही मेधावी थी और आईएएस बनने का सपना देखती थी। उसकी इस आकांक्षा को पूरा करने के लिए परिवार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन श्रेया का नीली बत्ती में अफसर बनकर आने का सपना अधूरा रह गया। भाई अभिषेक ने भावुक होते हुए कहा, "हमें यकीन था कि वह एक दिन आईएएस बनकर नीली बत्ती में घर आएगी, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि वह नीली बत्ती एंबुलेंस की होगी।"


श्रेया का निधन एक असामयिक हादसा है जिसने उसके परिवार और गांव को शोक में डुबो दिया है। उसके जाने से गांव में एक खालीपन सा महसूस हो रहा है, और परिवार के सदस्यों के चेहरे पर उम्मीदें चकनाचूर होती दिखाई दे रही हैं। श्रेया की यादें और उसकी अदम्य इच्छाशक्ति हमेशा उसके परिवार और शुभचिंतकों के दिलों में जीवित रहेंगी।

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