अम्बेडकरनगर। एक समय था जब किसी गांव या कस्बे में कुआं होना सम्मान का प्रतीक माना जाता था। दो दशक पहले तक, कुओं का होना आम बात थी, और यह ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा था। लेकिन समय के साथ, कुओं का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है, और जो बचे हैं, वे देखरेख के अभाव में 'मौत के कुएं' बनते जा रहे हैं।
आधुनिकीकरण के इस युग में ग्रामीण भी शादी व्याह शुभ मौके पर भी पुरानी परंपरा के अनुसार कुओं के महत्व की अनदेखी करने लगे हैं। भूमि संरक्षण विभाग की निष्क्रियता से कुओं का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।
गांवों में कुओं की दुर्दशा
कई ग्रामीणों ने बताया कि दो दशक पहले गांव के लोग खेतों की सिंचाई के लिए कुओं का इस्तेमाल करते थे, और गर्मियों में लोग कुओं के ठंडे और मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। लेकिन अब अधिकांश कुएं या तो पाट दिए गए हैं, या फिर देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
अकबरपुर ब्लॉक के गांव अहलादे के कई वाशिंदों ने बताया कि उनके घर के सामने स्थित कुएं की जगत चारों तरफ से टूट चुकी है। यह कुआं रास्ते के किनारे स्थित है, और इसके आसपास झाड़ियां उग आई हैं, जिससे यह नजर नहीं आता। इस कारण यह कुआं ग्रामीणों और राहगीरों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
खतरनाक हो चुके कुएं
ग्रामीणों ने आगे बताया कि इस गांव के बचे खुचे कुओं के बगल से गुजरने वाला रास्ता अत्यंत व्यस्त रहता है,ऐसे कुएं किसी भी समय किसी बड़े हादसे का सबब बन सकते है।
गांव के वासिंदों ने बताया कि ऐसे अंधे कुएं के पास बच्चे खेलते हैं, जिससे उनके गिरने का खतरा बना रहता है। साथ ही राहगीरों और ग्रामीणों के भी गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है।
लब्बो लुवाब यह कि उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर में कुओं की स्थिति बेहद गंभीर है, और इन्हें बचाने के लिए त्वरित कदम उठाने की जरूरत है।